निर्माण से पहले बहिष्कार अव्यावहारिक कदम: प्रो. लाल

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अमृतसर, 23 जून (आकाशमीत): पंजाब के पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो. दरबारी लाल ने भारत-चीन सीमा विवाद के कारण समूचे देश में चीनी माल के बहिष्कार पर टिप्पणी करते कहा कि बिना खुद निर्माण किए एवमं पूरी तरह आत्मनिर्भर हुए माल का बहिष्कार करना न तो मुनासिफ है, न उचित है और न ही तर्क संगत है न व्यावहारिक है। यदि अफरा-तफरी में इस नीति को देश में लागू कर दिया जाता है, तो समूचे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को नुकसान ही नहीं होगा, बल्कि महंगाई भी आसमान को छूने लगेगी। देश भक्ति के दृष्टिकोण से भले ही यह बात व्यावहारिक लगे परंतु वास्तविकता में यह पूरी तरह अव्यावहारिक होगी। क्योंकि चीनी सामान से भारत भरा पड़ा है। यद्यपि यह कम टिकाउ है, मगर दूसरे देशों की उपेक्षा अधिक सस्ता है। अभी तक भारत के पास इसका कोई ठोस विकल्प भी नहीं है।
प्रो. लाल ने कहा कि 1991 में उदारवाद की नीति अपनाने के बाद दूसरे देशों से निर्मित माल आना शुरू हो गया और भारत की परंपरागत लघु उद्योग धीरे-धीरे खत्म होने लगे। लोगों को बेकारी का सामना करना पड़ा और भारत चीनी माल पर निर्भर होता चला गया। भारत एक उद्योगिक राष्ट्र बनने की बजाए व्यापारियों का देश बनता चला गया। चीन में विदेशियों ने अरबो डालर खर्च करके कारखाने लगाने शुरू कर दिए। क्योंकि वहां आसानी से जमीन उपलब्ध होती है, ब्याजदर अति कम है। इस तरह करीब 30 सालों में चीन विश्व का सस्ता माल बनाने वाला प्रतिस्पर्धात्मक प्रणाली का देश बन गया। जबकि भारत में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए समय की सरकारों ने कोई कारआमद कदम नहीं उठाए और केवल व्यापार की तरफ ही तवजो देते चले गए और आज भारत पूरी तरह चीन के उत्पादों पर निर्भर हो चुका है।
प्रो. लाल ने कहा कि भारत चीन से करीब 61 अरब डालर का आयात करता है। जबकि चीन केवल 9 अरब डालर का माल भारत से खरीदता है। इस तरह दोनों के आयात और निर्यात में बहुत बड़ा अंतर है। देश में बनने वाले सामानों में लगने वाला 50 प्रतिशत कच्चा माल चीन से ही आयात होता है। बहिष्कार न मुनकिन नहीं, परंतु मुश्किल जरूर है। भारत को एफडीआई के लिए देश खोल देना चाहिए, कानूनों में परिवर्तन किया जाए। उद्योगिक दोस्ताना माहौल बनाया जाए। विदेशी कंपनियों को खुलकर सुविधाएं मुहैया की जाए। देश में लोगों को स्किल प्रदान की जाए और वो सभी वस्तुएं जो हम चीन से मंगवाते है, उनका भारत में तीव्रगति से निर्माण शुरू कर देना चाहिए, ताकि हम चीन का उद्योगिक और व्यापारिक दृष्टिकोण से मुकाबला कर सके।
प्रो. लाल ने कहा कि चीन विस्तारवादी नीति का हामी है। एक धोखेबाज और विश्वासघाती पड़ोसी है, आस पास के देशों की जमीनों को 1949 के बाद हड़पता आया है और यह सिलसिला अभी भी मसलसल जारी है। सीमा को सुरक्षित रखने के लिए भारत को किसी भी तरह ढील नहीं बरतनी चाहिए। बल्कि चीन का डटकर मुकाबला करना हमारा राष्ट्रीय धर्म होना चाहिए और बहिष्कार के मसले पर पुर्नः विचार करना चाहिए। इस मौके पार्षद प्रदीप शर्मा, जवाहर पाठक, नवदीप शर्मा, निश्चिल शर्मा, जनकराज लाली आदि मौजूद थे।


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